आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय का उल्लेख और उसकी व्याख्या

आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय का उल्लेख और उसकी व्याख्या

विषय सूची

1. गिलोय का परिचय और आयुर्वेद में उसका स्थान

गिलोय (Tinospora cordifolia) एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे संस्कृत में अमृता या गुडुची भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में गिलोय को जीवनदायिनी औषधि माना जाता है। यह बेलनुमा पौधा अक्सर पेड़ों पर चढ़ता हुआ देखा जा सकता है और इसकी पत्तियाँ दिल के आकार की होती हैं।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय का उल्लेख

आयुर्वेदिक शास्त्रों जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और भावप्रकाश निघंटु में गिलोय का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, गिलोय त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को संतुलित करने की क्षमता रखती है।

आयुर्वेद में गिलोय के महत्व के मुख्य बिंदु

गुण आयुर्वेदिक लाभ उपयोग का क्षेत्र
रसायन (टॉनिक) शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना इम्यूनिटी बूस्टर
ज्वरघ्न (बुखार कम करने वाला) विभिन्न प्रकार के बुखार में उपयोगी डेंगू, मलेरिया आदि में लाभकारी
दीपन-पाचन (पाचन सुधारने वाला) भूख बढ़ाने व पाचन शक्ति बढ़ाने में सहायक अपच व गैस की समस्या में उपयोगी
रक्तशोधक (रक्त शुद्ध करने वाला) त्वचा संबंधी रोगों में फायदेमंद मुंहासे, एलर्जी आदि में उपयोगी
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में गिलोय की भूमिका

भारत के विभिन्न हिस्सों में लोग पारंपरिक रूप से गिलोय का इस्तेमाल करते आए हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग बुखार, सर्दी-खांसी, और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए गिलोय का काढ़ा या रस पीते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी आयुवर्ग के लोग इसके लाभ लेते हैं। यही कारण है कि आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा गिलोय को अमृता कहा गया है, जो अमरता देने वाली मानी जाती है।

2. आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय का वर्णन

आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, जिसमें अनेक औषधीय पौधों का विस्तार से उल्लेख मिलता है। गिलोय (Tinospora cordifolia) को आयुर्वेद में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ पर हम देखेंगे कि प्रमुख आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और भैषज्य रत्नावली में गिलोय का कैसे वर्णन किया गया है और इसकी विशेषताएं क्या बताई गई हैं।

चरक संहिता में गिलोय

चरक संहिता आयुर्वेद का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें गिलोय को अमृता कहा गया है। इसे त्रिदोष नाशक बताया गया है अर्थात यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है। चरक संहिता के अनुसार, गिलोय ज्वर (बुखार), मधुमेह (डायबिटीज), और शारीरिक दुर्बलता जैसी समस्याओं में उपयोगी है।

चरक संहिता में गिलोय के लाभ

रोग/लक्षण गिलोय का उपयोग
ज्वर (बुखार) ज्वरहर औषधि के रूप में
मधुमेह रक्त शर्करा नियंत्रित करने हेतु
शारीरिक कमजोरी ऊर्जा बढ़ाने के लिए

सुश्रुत संहिता में गिलोय

सुश्रुत संहिता में गिलोय को विशेष रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधि बताया गया है। इसमें लिखा गया है कि गिलोय रक्त शुद्धि करती है और शरीर को संक्रमण से बचाती है। इसके अलावा, सुश्रुत ने त्वचा रोग, मूत्र विकार और पाचन संबंधी समस्याओं में भी गिलोय के प्रयोग की सलाह दी है।

सुश्रुत संहिता के अनुसार गिलोय के उपयोग

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
  • त्वचा रोगों के उपचार हेतु
  • मूत्र संबंधी परेशानियों में लाभकारी
  • पाचन तंत्र को मजबूत करने के लिए

भैषज्य रत्नावली में गिलोय

भैषज्य रत्नावली एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक फार्माकोपिया है, जिसमें विभिन्न औषधियों के निर्माण की विधियाँ दी गई हैं। इसमें गिलोय का उपयोग कई प्रकार की औषधियों में मुख्य घटक के रूप में बताया गया है। खासकर बुखार, यकृत विकार (लीवर संबंधी समस्या), तथा गठिया जैसे रोगों में इसका व्यापक रूप से उल्लेख हुआ है।

भैषज्य रत्नावली में गिलोय के प्रमुख प्रयोग

रोग/स्थिति गिलोय का प्रयोग कैसे करें?
बुखार (फीवर) काढ़ा या रस के रूप में सेवन करें
गठिया (आर्थराइटिस) पाउडर या टैबलेट के रूप में उपयोग करें
लीवर विकार गिलोय रस या चूर्ण लें
सारांश:

आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय को बहुउपयोगी औषधि माना गया है, जो अनेक बीमारियों के उपचार में काम आती है। इसकी चर्चा चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और भैषज्य रत्नावली जैसे प्रमुख ग्रंथों में विस्तार से की गई है, जिससे इसकी प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति में अहमियत स्पष्ट होती है।

औषधीय गुण और पारंपरिक उपयोग

3. औषधीय गुण और पारंपरिक उपयोग

गिलोय के औषधीय गुण

आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय को अमृत के समान माना गया है। इसे त्रिदोषनाशक कहा जाता है, यानी यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है। गिलोय में मुख्य रूप से एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीपाइरेटिक (बुखार कम करने वाला) और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं।

गिलोय के प्रमुख औषधीय गुण

औषधीय गुण लाभ
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाता है
बुखार कम करना मलेरिया, डेंगू जैसे बुखार में लाभकारी
पाचन शक्ति बढ़ाना अपच, गैस, कब्ज आदि समस्याओं में मददगार
एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालता है
डायबिटीज नियंत्रण रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक

पारंपरिक घरेलू नुस्खों में गिलोय का उपयोग

भारतीय संस्कृति में गिलोय का उपयोग कई पीढ़ियों से किया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में लोग अक्सर बुखार, सर्दी-खांसी या इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए गिलोय की डंडी या रस का सेवन करते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथ जैसे चरक संहिता और शुष्रुत संहिता में भी इसके प्रयोग का उल्लेख मिलता है। नीचे कुछ आम घरेलू नुस्खे दिए गए हैं:

आम घरेलू नुस्खे और विधि
उपयोग/नुस्खा विधि / कैसे करें उपयोग?
गिलोय का काढ़ा (डेकोक्शन) गिलोय की डंडी को पानी में उबालकर छान लें, रोज सुबह पिएँ। यह बुखार एवं रोग प्रतिरोधकता के लिए फायदेमंद है।
गिलोय रस (जूस) ताजा गिलोय की डंडी पीसकर उसका रस निकालें और 1-2 चम्मच सेवन करें। यह पाचन व डायबिटीज के लिए अच्छा है।
गिलोय व तुलसी संयोजन गिलोय और तुलसी दोनों का रस मिलाकर पीने से सर्दी-खांसी में राहत मिलती है।
त्वचा रोगों के लिए लेप गिलोय की डंडी पीसकर उसमें चंदन मिला लें और त्वचा पर लगाएँ। यह खुजली व एलर्जी में उपयोगी है।
संक्रमण रोकथाम हेतु चूर्ण सेवन सूखी गिलोय को पीसकर उसका चूर्ण बनाएं, 1/2 चम्मच गर्म पानी के साथ लें। यह संक्रमण से बचाव करता है।

महत्वपूर्ण बातें एवं सावधानियाँ

हालांकि गिलोय प्राकृतिक औषधि है, लेकिन किसी भी नई हर्बल दवा को शुरू करने से पहले डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य की सलाह लेना जरूरी है, खासकर गर्भवती महिलाएँ, छोटे बच्चे या गंभीर बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति। लगातार बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने से कभी-कभी पेट संबंधी समस्या हो सकती है।

4. गिलोय से संबंधित आधुनिक वैज्ञानिक शोध

आधुनिक विज्ञान में गिलोय का महत्व

गिलोय (Tinospora cordifolia) को आयुर्वेद में अमृता या गुडुची के नाम से जाना जाता है। पुराने समय से भारतीय चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग बुखार, इम्यूनिटी बढ़ाने, और कई अन्य रोगों के उपचार में किया जाता रहा है। हाल के वर्षों में, वैज्ञानिकों ने भी गिलोय के औषधीय गुणों की पुष्टि करने के लिए विभिन्न शोध किए हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान: मुख्य निष्कर्ष

अनुसंधान विषय मुख्य निष्कर्ष स्रोत/वर्ष
प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव गिलोय प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ाता है। ICMR रिपोर्ट, 2021
डेंगू व मलेरिया में उपयोगिता गिलोय प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में सहायक पाया गया है। AIIMS स्टडी, 2020
एंटीऑक्सीडेंट गुण इसमें शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो शरीर को मुक्त कणों से बचाते हैं। NBRI रिसर्च, 2019
मधुमेह नियंत्रण में सहायता गिलोय ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मददगार पाया गया है। IITR अध्ययन, 2018
जोड़ों के दर्द में राहत गिलोय के सेवन से गठिया व जोड़ दर्द में आराम मिलता है। Ayush मंत्रालय रिपोर्ट, 2022

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में गिलोय का स्थान

आधुनिक चिकित्सा जगत में अब गिलोय को केवल पारंपरिक जड़ी-बूटी नहीं माना जाता, बल्कि इसके औषधीय गुणों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया जा रहा है। डॉक्टर और विशेषज्ञ अब गिलोय आधारित सप्लीमेंट्स और टॉनिक को इम्यूनिटी बूस्टर एवं सहायक उपचार के रूप में सलाह देते हैं। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी गिलोय की महत्ता पर विशेष जोर देता है। यह खासकर वायरल संक्रमण, मौसमी फ्लू और बुखार जैसी बीमारियों में काफी कारगर सिद्ध हो रहा है।

उपयोगिता और सावधानियाँ:

  • कैप्सूल/टेबलेट: आजकल बाजार में गिलोय कैप्सूल या टेबलेट के रूप में आसानी से उपलब्ध है।
  • काढ़ा: परंपरागत रूप से गिलोय का काढ़ा बनाया जाता है, जिसमें तुलसी व अदरक मिलाकर सेवन किया जाता है।
  • सावधानी: गर्भवती महिलाएं और गंभीर रोगी डॉक्टर की सलाह पर ही गिलोय का सेवन करें। अधिक मात्रा में सेवन नुकसानदायक हो सकता है।

5. सावधानियाँ और संस्कृति में प्रासंगिकता

आयुर्वेदिक ग्रंथों में गिलोय का उल्लेख इसके औषधीय गुणों के लिए किया गया है, लेकिन इसका सेवन करते समय कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ रखना आवश्यक है। इसके अलावा, भारतीय समाज और संस्कृति में भी गिलोय की एक विशेष भूमिका रही है।

गिलोय के सेवन से जुड़ी सावधानियाँ

सावधानी विवरण
गर्भवती महिलाएँ गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को चिकित्सक की सलाह के बिना गिलोय का सेवन नहीं करना चाहिए।
दवा का सेवन करने वाले व्यक्ति यदि आप डायबिटीज, ऑटोइम्यून रोग या कोई अन्य दवा ले रहे हैं, तो गिलोय लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
बच्चे और बुजुर्ग बच्चों और बुजुर्गों के लिए गिलोय की मात्रा सीमित रखनी चाहिए और विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
लंबे समय तक सेवन बहुत लंबे समय तक लगातार गिलोय का सेवन करने से कभी-कभी पेट खराब या अन्य हल्के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

संभावित दुष्प्रभाव

  • कुछ लोगों को दस्त, कब्ज या सिरदर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • डायबिटीज के मरीजों में शर्करा स्तर बहुत कम हो सकता है।
  • ऑटोइम्यून रोग वाले लोगों को इसका उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

भारतीय समाज एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में भूमिका

भारतीय संस्कृति में गिलोय को अमृता या गुडुची कहा जाता है, जिसका अर्थ है जीवनदायिनी शक्ति। पारंपरिक घरों में बुखार, सर्दी-खांसी या रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय का उपयोग आम है। कई धार्मिक व्रतों एवं त्योहारों के दौरान भी इसे स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में अपनाया जाता है। गाँवों में लोग अब भी पुराने आयुर्वेदिक नुस्खों के अनुसार गिलोय की बेल अपने घरों के आसपास लगाते हैं और प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में इसका प्रयोग करते हैं। यह भारतीय ज्ञान परंपरा और परिवारिक स्वास्थ्य देखभाल की अनोखी मिसाल प्रस्तुत करता है।